नई दिल्ली – दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ अशोक कुमार वालिया ने मौजूदा केजरीवाल सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि उनके 3 साल के शासन में डायरिया, और एचआईवी जैसी बीमारियों में भारी इजाफा होने से पूरी दिल्ली बीमार है। इसके बावजूद आप सरकार ने 100 से ज्यादा डिस्पेंसरियां बंद कर दी हैं। वालिया ने स्वास्थ्य बजट पर भी निशाना साधते हुए कहा कि केजरीवाल सरकार पब्लिक को गुमराह करने के लिए बजट तो बढ़ा देती है लेकिन हसलियत में बजट को खर्च भी नहीं कर पा रहे है।
वालिया ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में ऐतिहासिक बढ़ोतरी को लेकर अपनी पीठ थपथपाई लेकिन सचाई यह है कि-
- 2014-2015 के वित्त वर्ष में स्वास्थ्य बजट 2390 करोड़ था, जिसमें सरकार 2124 करोड़ ही खर्च कर पाई।
- 2016-17 में यह बजट 3200 करोड़ का था, जिसमें से 2096 करोड़ खर्च हुआ। यहां पर सरकार 34 प्रतिशत पैसा बिना खर्च किए रह गई।
- इसी तरह 2017-18 में स्वास्थ्य पर बजट 2627 करोड़ था, उसमें से सितंबर 2017 तक केवल 666 करोड़ खर्च हुए, जिसका मतलब यह है कि 75 प्रतिशत राशि बची हुई है।
हेल्थ क्लिनिक में मरीजों का रजिस्ट्रेशन कम…
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर एके वालिया ने कहा कि मोबाइल हेल्थ क्लिनिक और स्कूल हेल्थ क्लिनिक में मरीजों का रजिस्ट्रेशन 2013-14 के मुकाबले 2016-17 में 91 प्रतिशत कम हुआ है। स्कूल हेल्थ स्कीम बंद होने के कगार पर है और स्कूल हेल्थ क्लिनिक केवल 53 रह गए हैं। मोबाइल वैन जो निर्माणाधीन जगहों पर स्वास्थ्य सेवाएं देती हैं, उनकी संख्या 2013-14 में 90 थी, जबकि सितंबर 2017 में एक भी मोबाइल वैन नहीं है।
मोहल्ला क्लिनिक से आप नेताओ को प्रॉफिट…
वालिया ने कहा कि मोहल्ला क्लिनिक के नाम पर आप सरकार ने लूट मचाई हुई है क्योंकि ज्यादातर क्लिनिक आप नेताओं और कार्यकर्ताओं की जगहों पर मार्केट रेंट से बढ़े हुए अनाप-शनाप किराए पर चलाए जा रहे हैं। इन क्लिनिकों में प्राइवेट डॉक्टर काम कर रहे है जो 75 हजार से 1 लाख रुपये तक रोजाना 4 घंटे काम करके सैलरी ले रहे हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में 12 घंटे काम करने के बावजूद डाक्टरों को कम वेतन मिल रहा है।
कर्मिको की कमी…
उन्होंने कहा कि 2014 में एचआईवी के 2,211 मामले सामने आए थे। वे 684 प्रतिशत बढ़कर 2016 में 17,332 तक पहुंच गए हैं। सरकार के अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में मेडिकल स्टाफ की 25 प्रतिशत, पैरामेडिकल स्टाफ की 31 प्रतिशत, नर्सों की 19 प्रतिशत, प्रशासनिक कर्मचारियों की 41 प्रतिशत और लेबर की 37 प्रतिशत की कमी है।