आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नाम खुला पत्र |
आदरणीय प्रधानमंत्री जी ,
सबसे पहले मैं अपना परिचय देना चाहूँगा कि मैं CRPF का 15 साल से सेवानिर्वित अधिकारी (कमाडेंट) हूँ | सेना व अर्धसेना तीन वर्गों में बंटी होती है | पहला वर्ग OR’s , जिसमें सिपाही से लेकर हवालदार तक के रैंक शामिल होते हैं | ये वर्ग सबसे ज्यादा दिल वाला होता है और ये वर्ग लगभग पुरे का पूरा ग्रामीण क्षेत्र से होता है | दूसरा वर्ग , जिसे सेना में JCO’s व अर्धसेना में SO”s (subordinate officers) कहते हैं | ये वर्ग भी लगभग पहले वर्ग से ही बनता है | तीसरा वर्ग में सभी ऑफिसर्स शामिल होते हैं | मैंने CRPF में लगभग साढ़े-चार साल OR”s वर्ग में , लगभग 10 साल SO’s (JCO”s) वर्ग में , और तीसरे वर्ग में अधिकारी के तौर पर बीस साल सेवा दी है |
इस अवधि में सबसे पहले बंगाल में नक्सलवादी मूवमेंट को झेला , इसके बाद और भी कई प्रकार की ड्यूटी करने के बाद 7 जून , 1986 को उग्रवाद प्रभावित पंजाब प्रान्त में अपनी सेवा शुरू करके 25 मार्च , 1992 तक , सरदार बेअंत सिंह की सरकार बनने तक , अपनी सेवाएं दी | पंजाब में ड्यूटी के दौरान ही एक बार चार महीने के लिए गुजरात पुलिस की हड़ताल के कारण गुजरात गया , और एक बार सन 1990 में चार महीने के लिए अयोध्या में रहा | जिसमें लाल कृष्ण अडवानी जी की रथ यात्रा अयोध्या पहुंची थी और अर्धसेना बल ने उस समय बाबरी मस्जिद को ढहाने से बचाया था | पंजाब में मेरी सेवाओं के दौरान मैंने देखा कि भाजपा का कोई भी बड़ा नेता उग्रवाद के डर से पंजाब नहीं गया | उस समय ये हालात बना दिए गए थे कि हर सिख को संदेह की नजर से देखा जाता था जो आज कश्मीरियों के साथ हो रहा है | पंजाब के उग्रवाद को दबाने के लिए भारतीय सेना को भी भेजा गया था लेकिन वो पूर्णतया असफल रही थी | पंजाब में उग्रवाद का खात्मा पंजाब पुलिस और अर्धसेना बलों की मदद से व तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह और पंजाब पुलिस के DGP के.पी.एस.गिल के प्रयासों से हुआ था | 25 मार्च , 1992 को मेरा डिप्टी-कमाडेंट के पद पर प्रमोशन होने के बाद मुझे अवंतीपुरा में CRPF के RTC-IV (रिक्रूट ट्रेनिंग सेंटर) को खड़ीं करने का आदेश हुआ | ये वहीँ जगह है जहाँ अभी हमारे चालीस जवान शहीद हुए हैं | और इस सेंटर को लगातार ढेढ़ साल तक बगैर किसी कमाडेंट के चलाने का मुझे श्रेय है | 1994 में इस सेंटर को श्रीनगर के हवाई अड्डे के पास हमामा में स्थान्तरित कर दिया गया था | तब वहां के हालात आज से भी ज्यादा बद्दतर थे | उसके बाद द्वितीय कमांड अधिकारी के तौर पर मेरा प्रमोशन होने पर मेरी पोस्टिंग कश्मीर में ही थी , वहीँ कश्मीर में , 2 जून , 1996 को किश्तवाड़ क्षेत्र में बहुत जबरदस्त अम्बुश हुआ था | जुलाई , 1996 को वहां से फिर मेरा तबादला उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र आसाम और फिर मिजोरम हो गया | 1998 में वहां से फिर वापिस कश्मीर तबादला हुआ | इस दौरान CRPF की तरफ से आर्मी के साथ मिलकर कई ऑपरेशनस को अंजाम दिया | इन ऑपरेशनस में उग्रवादियों के खिलाफ हमें सुचना देने वाले सभी के सभी वहीँ के सथानीय कश्मीरी मुस्लमान थे जो बड़ी बहादुरी से छिपते-छुपाते हमको बगैर किसी लालच के सुचना दिया करते थे | इसके लिए आज मैं उन कश्मीरी मुसलमानों को सलाम करता हूँ | मैं 1969 में कश्मीर में ही भर्ती हुआ था , और जम्मू-कश्मीर से 2001 तक सम्बन्ध रहा है , और मैंने कश्मीर के इतिहास को बहुत ही गहनता से पढ़ा हुआ है | मुझे याद है कि 1970 तक कश्मीर के ऐसे बहुत से थाने थे जहाँ कभी भी हत्या का मामला दर्ज नहीं हुआ था | इसीलिए कश्मीर में आगे के कदम उठाने के लिए हमें सभी कश्मीरी मुसलमानों को देशद्रोही समझने की भूल नहीं करनी चाहिए | ऐसा प्रचार करके हमें अपनी सेना और अर्धसेना के रास्ते में रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए और न ही हमें जो कश्मीरी मुस्लमान भारत के विभन्न क्षेत्रों में अधयन्न कर रहें हैं उनको किसी प्रकार तंग करना चाहिए | यह सभी बतालने का मेरा मकसद है कि मेरी सेवाकाल का अधिक समय पंजाब और जम्मू-कश्मीर के उग्रवाद में गुजरा है | जहाँ कि मुझे अनेकों घटनाएं याद हैं और मैं कश्मीरियों और पंजाबियों के बारे में बहुत कुछ जनता हूँ |
आपका ये एलान कि आपने सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी है यह बड़ा ही हास्यपद बयान है | इसे हिप्पोक्रेटिक बयान कहा जा सकता है | यह आम जनता को गुमराह करने वाला बयान है | नहीं तो सेना का कोई जनरल इस बयान की व्याख्या करके बतला दे | क्योंकि जहाँ-जहाँ उग्रवाद है वहां उग्रवादियों के खिलाफ लड़ने की खुली छूट होती है चाहे कोई भी सरकार हो | हमारी सेना-अर्धसेना के सिपाहियों से लेकर जनरल तक को आदेशों की आवश्यकता होती है , खुली छूट की नहीं | जहाँ तक खुली छूट की बात है तो वह एक सिविलियन , जिसने अपनी सुरक्षा के लिए कोई लाइन्सेंसी हथियार ले रखा है , उसे भी अपनी सुरक्षा में अपना हथियार इस्तेमाल करने की पूरी छूट है | अभी यह जानने कि आवश्यकता है कि क्या किसी पर भी उग्रवादी होने का संदेह होने पर उसे मार सकते हैं ? और यदि मार सकते हैं तो इस दौरान मारे जाने वाले बेगुनाह लोगों की मौत का जिम्मेवार कौन होगा ? क्योंकि क्रॉस फायरिंग में आमतौर पर बेगुनाह लोग भी मारे जाते हैं | ऐसा पहले एक बार हो चूका है जिसके बारे में आपने कश्मीर में एक रैली में छाती ठोकते हुए अपने भाषण में बताया था कि “ पहली बार , तीस साल में पहली बार , ये मोदी सरकार का कमाल देखिये पहली बार सेना ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि जो दो नौजवान मारे गए थे वह सेना की गलती थी और सेना ने अपनी गलती मानी , जाँच कमीशन बैठा , और जिन लोगों ने गोली चलाई थी उन पर केस दर्ज कर दिया गया , ये मेरे नेक इरादों का सबूत है “ | यदि अब ऐसा फिर हुआ तो आप फिर उसका जिम्मेवार सेना-अर्धसेना के जवान को बता देंगे ? तो फिर खुली छूट का अर्थ क्या हुआ ?
आज हमारी सेना व अर्धसेना को आवश्यकता है आदेशों की , और ये आदेश स्पष्ट होना चाहिए कि जहाँ बॉर्डर पर पाकिस्तान की तरफ से टू-इंच या थ्री-इंच आदि के बम्ब के फायर आते हैं वहां टैंक या लड़ाकू विमान से गोला गिराया जाये ताकि वहां से फायर आना बंद हो जाये | और साथ-साथ पाकिस्तान में जहाँ-जहाँ इन उग्रवादियों के ट्रेनिंग सेंटर हैं तथा उग्रवादी संगठनों के सरगना पनाह लिए हुए हैं वहां कार्यवाही की जाए , तथा आप अपने वायदे के अनुसार देश के गुनाहगार जो पाकिस्तान में रह रहें हैं जिसमें दाऊद जैसे देशद्रोही आदियों को वापिस देश में लाकर सजा दिलाएं | नहीं तो इस प्रकार का आपका आदेश आम जनता को गुमराह करने वाला ही सिद्ध होगा | अभी आपके पास मौका है 56 इंच सीना सिद्ध करने का , अभी चुके तो फिर यह मौका दुबारा नहीं मिलेगा | फरवरी , 2016 में हरियाणा में हिंसा के दौरान आपने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को कहा था कि अभी दुबारा नहीं चूकना है | जबकि वहां उग्रवादी भी नहीं थे | यही बात अब हम आपसे कह रहें हैं कि अभी आप स्वयं चूक करेंगे तो देश की जनता आपको माफ़ करने वाली नहीं है ? हमने आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले सन 2014 में ही लिख दिया था कि पाकिस्तान के विरुद्ध कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह से सोच लेना कि पाकिस्तान के पास भी परमाणु हथियार हैं , और ये हथियार उस देश के पास हैं जो बिलकुल भी परिपक्क नहीं है | ये ऐसी ही बात है जिस प्रकार किसी बन्दर के हाथ में उस्तरा दे दिया जाये | पाकिस्तान नाम का बंदर हम से पहले इन हथियारों का इस्तेमाल करेगा और ये हथियार हमारे देश में सबसे पहले गुजरात पर इस्तेमाल किये जायेंगे इसीलिए हमारी कार्यवाही इतनी धमाकेदार होनी चाहिए कि बंदर इन हथियारों का इस्तेमाल ही न कर पाए | क्योंकि ये हकीकत रही है कि कमजोर अपने डर में हथियारों का सबसे पहले इस्तेमाल करता है |
नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की जो बात कही है वह शत-प्रतिशत उचित है क्योंकि पाकिस्तान के साथ बातचीत , चाहे युद्ध करने से पहले या युद्ध के बाद , करनी ही पड़ेगी | याद होगा कि सन 1971 में हमने पाकिस्तान को बुरी तरह से पटखनी दी थी और श्रीमती इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान को सजा के तौर पर अलग से बांग्लादेश बनवा दिया और पाकिस्तान के नब्बे हजार से अधिक सैनकों को हमने बंधी बनाया , लेकिन फिर भी सन 1972 में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौता करना पड़ा | इसीलिए उचित तो ये होगा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलाकर सपष्ट कह दिया जाये कि वह वहां उग्रवाद का धंधा बंद करे और हमारे गुनाहगारों को हमारे हवाले कर दे , नहीं तो इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहे | और यदि पाकिस्तान तुरंत ऐसा नहीं करता है तो बगैर किसी झिझक के पाकिस्तान पर हमला बोल देना चाहिए क्योंकि हमारे जनरल पहले से ही कह चुके हैं कि वे लड़ाई के लिए तैयार हैं | इस प्रकार नवजोत सिंह सिद्धू ने जो कुछ कहा है वह केवल उचित ही नहीं हमारे देश के हित में भी है |
आज जब पुलवामा में शहीद हुए CRPF के सिपाही अवदेश यादव के अंतिम संस्कार के समय उनका दो वर्ष का बेटा अपने मृतक पिता की तरफ कुछ न जानते हुए भी ताक रहा था तो उस समय मैं सोच रहा था कि यदि बदकिस्मती से आज से सोलह साल के बाद इसे कोई नौकरी नहीं मिल पाई तो ये बेचारा दसवी पास करके CRPF में सिपाही की नौकरी पाने के लिए अपने पिता की शहीदी की दुहाई देकर एक दिन मारे-मारे फिरेगा , और ये नौकरी के लिए इतना परेशान हो जायेगा कि महीनों तक धक्के खा कर भी शायद ही इसको कोई नौकरी मिले क्योंकि मृतको के बच्चों को इतने सालो के बाद नौकरी देने का अभी तक कोई भी ठोस कानून नहीं बना है | आज भी उस समय के पंजाब में तथा जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए सिपाहियों के बच्चे ठोकर खाते फिर रहें हैं | मुझे तो लगता है कि सोलह साल के बाद ये लड़का अपने शहीद पिता के सरकारी कागज ही नहीं ढूंढ पायेगा क्योंकि आजतक किसी भी सरकार ने अर्धसैनिक बलों के शहीदों को शहीद का दर्जा नहीं दिया है | जब सरकार ने आजतक अर्धसैनिक बलों के शहीदों को शहीद ही नहीं माना है तो फिर हम किस बात के लिए शहीद-शहीद कर रहें हैं ? मुझे ये समझ में नहीं आता कि इस देश के करोड़ों लोग किस बात के लिए इनको शहीद-शहीद पुकार रहें हैं ? प्रधानमंत्री जी , जनता तो भोली हो सकती है क्या आप भी भोले हैं ? आप बतलाएं कि क्या ये चालीस वास्तव में शहीद हैं ? और यदि शहीद हैं तो इनको शहीद का दर्ज कब और किस सरकार ने दिया है ? या देंगे ? अर्धसैनिकों से समबन्धित मैंने छह महीने पहले अंग्रेजी में एक लेख लिखा था लेकिन उसे छापने की किसी समाचार पत्र ने जरुरत ही नहीं समझी | उस लेख को अभी मैं इस पत्र के अंत में फिर से दोहरा रहा हूँ |
प्रधानमंत्री जी , मुझे तो आपकी पार्टी की निम्नलिखित कमियां ही नजर आती रही हैं , जो इस प्रकार हैं :-
i) पंजाब में उग्रवाद के समय सन 1987 से लेकर सन 1991 तक अर्थात पांच साल के लम्बे समय तक आपकी पार्टी का कोई भी बड़ा नेता डर के कारण पंजाब नहीं गया |
ii) आपकी ही पार्टी के राज में तत्कालीन महान प्रधानमंत्री , भारत रत्न , श्री अटल बिहारी वाजपयी जी की सरकार में पुलवामा में शहीद हुए CRPF के इन जवानों को शहीद करने वाले कुख्यात सरगना मसूद अजहर को अपने दो साथियों के साथ हमारे ही देश के हवाई जहाज में हमारे ही तत्कालीन विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह जी अपने बगल में बैठा कर कंधार छोड़ कर आये थे | और इस अवधि में इस कुख्यात मुजरिम ने हमारे हजारों सैनिको की कश्मीर में जान ले ली | (अपहृत विमान में लगभग 120 यात्रिओं को मुक्त करवाने के लिए उनके परिजनों ने वाजपई सरकार को झुका दिया था | आज उसी सरगना मसूद अजहर ने एक साथ चालीस अर्धसैनिक बलों के जवानों की शहीदी करवा दी | क्या इसके लिए अपह्रत विमान के यात्रिओं के परिजन जिन्होंने इसकी रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाया था वो कसूरवार नहीं हैं ?) | ये आज इतिहास बन चूका है इसको कैसे छुपाओगे ?
iii) आपकी ही पार्टी की सरकार ने इन अर्धसैनिक बलों के जवानों को हमेशा-हमेशा के लिए अपनी पेंशन के नैतिक अधिकार से वंचित कर दिया | क्या आपकी सरकार ने लगभग पांच साल में इस पर कभी विचार किया ?
iv) क्या ये सच नहीं है कि आपकी सरकार ने आजतक केवल सेना को ही देश का रक्षक समझा है और अर्धसैनिक बलों को आपकी सरकार ने दुसरे दर्जे का नागरिक नहीं बना दिया है ? उदाहरण के लिए ततकालीन कांग्रेस सरकार ने संसद में इन अर्धसैनिक बलों के लिए कैंटीन व दूसरी मेडिकल सुविधाओ की बात चलाई थी वो सभी बातें कहाँ गई ? यदि आप आदेश दें तो इस सम्बन्ध में हम अनेक उदहारण दे सकते हैं |
v) आप अपने भाषणों में कई बार धर्म-निरपेक्षता की बात कह चुके हैं जो हमारे संविधान की मूलभावना की आवश्यकता है तो क्या आप देश को बतलाएँगे कि कौन से काम के आधार पर आपकी पार्टी के सांसद 2 से बढ़कर 282 हो गए ? (यदि गाय-गंगा-गीता और मंदिर की बात छोड़ दी जाए तो कहने के लिए आपके पास क्या शेष है ?)
आदर सहित
प्रार्थी
हवा सिंह सांगवान , पूर्व कमाडेंट , CRPF