जयपुर- “ऐसी औलाद से तो बे-औलाद होना ही ठीक है”- ये कहना है सीकर के दांतारामगढ़ से 85 वर्षीय रामेश्वर विद्यार्थी का और कहे भी क्यों नही जिस व्यक्ति ने हमेशा समाज सेवा की, 30 वर्ष तक सरपंच रहकर अपने गांव की सेवा की लेकिन आज बुढ़ापे में चार बेटों के होते हुए भी उनमे से कोई भी एक अपने बूढ़े बाप का सहारा बनने को तैयार नही है। जिन चार बेटों को पाल-पोष कर बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया आज उन्ही बेटों ने अपने बूढ़े बाप से मुह फेर लिया।
रामेश्वर विद्यार्थी 30 साल तक सरपंच रहे, 10 साल तक राजस्थान भूदान बोर्ड के सचिव रहे लेकिन ईमानदार इतने की खुद के लिए कभी कुछ नही लिया। वो गांव के लिए एक आदर्श है लेकिन खुद की संतान के लिए नही।
बेटो ने भले ही मुह फेर लिया हो लेकिन गांव के लोग अब उनका सहारा बन गए है। 30 साल तक सरपंच रहकर गांव की सेवा करने का फल उन्हें आज गांव के लोग उनका सहारा बनकर दे रहे हैं। गांव के ही एक व्यक्ति ने रहने के लिए अपना मकान दे रखा है। उनके आसपास रहने वाले गांव के लोग रोज उनके लिए समय पर खाने, दूध व दवा की व्यवस्था कर देते हैं। सीकर पत्रिका में आज छपी इस कहानी के दो पहलू है, एक तरफ वो चार बेटे हैं जो उस पिता को नही रख सकते जिसने पाल-पोषकर बड़ा किया तो दूसरी तरफ वो गांव के लोग है जो निस्वार्थ भाव से उनकी सेवा कर रहे हैं।